Ram Janmabhoomi

 जो सभ्यता अपने संघर्षों को भूल जाती है, वह अपनी गलतियों की पुनरावृत्ति और आत्मविनाश के दुश्चक्र ें फंसने को अभिशप्त होती है। स्वतंत्रता की लड़ा, िपत्य तथा अत्याचारों के िलाफ प्रतिरो अक्सर साहिक स्मृियों से गाब हो जाते हैं और उत्पीड़न की बोझ तले, नगढ़ंत कथाओं द्वारा हिंदू पहचान को मिटाने के व्यवस्थित प्रासों के ाध्यसे उन स्मृियों की चुंली कर दी जाती हैं। भारत की पवित्र भौगोलिक संरचना, हिंदू धर्म के उद्ग्थल और हिंदू लोगों की पैतृक भूमि, लगातार हुए आक्रणों के साक्षी हैं, जिसने साहिानस पर अमिट घाव छोड़े हैं। 

 

रा जन्मभूमि आंदोलन हिंदू सभ्यता की जड़ों पर हुए प्रहार और इसे पुनः प्राप्त करने के दुर्धर्ष संघर्ष का एक जीवंत एवं र्मिक दस्तावेज है। शस्त्र आारित आख्यानों के प्रभुत्व वाले ुग ें, जहां अत्याचार करने वालों को पीड़ित का और पीड़ितों को उत्पीड़क का ताज पहनाा जाता है, ह पुस्तक आंदोलन के उदात्त संघर्ष ें अनगिनत हिंदुओं के अश्रु, ्वेद और रक्त से लिखी बेबाक सच्चाों का स्मरण कराती है। ह पुस्तक इस बात की अनुस्मािका भी है कि इस ुग ें जन्मा प्रत्येहिंदू, उन विपदाओं, कष्टों और उन लोगों द्वारा किए गए बलिदानों को कभी न भूले जो उनसे पहले हुए हैं। यदि जानेअनजाने भूल जाते हैं, तो अपनी हान सभ्यता के विनाश के भागीदार होंगे। 

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