Sanatan Dharma, a Quest for Truth
This 15th August marks the 151st birth anniversary of Sri Aurobindo. To commemorate this occasion, BluOne Ink is launching a seminal work on Sanatan Dharma by Partho Partho’s book, This is […]
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To mark the 151st birth anniversary of Sri Aurobindo, BluOne Ink is launching a new and insightful biography of the great revolutionary and Rishi, Sri Aurobindo on 15th August in […]
The Matri Mandir, designed, inspired and guided through its construction by the Mother of Pondicherry Ashram, stands as a profoundly evocative symbol of a new age of truth consciousness on […]
From the Upanishads Janak is widely known as the the King-philosopher of ancient India. He was a Rishi, a Seer, as well as a noble and accomplished king. His court […]
India is an ancient civilization. In fact, it is the only civilization that has survived unbroken, and essentially unchanged, for nearly five thousand years. Much more than a nation, as […]
True Yoga is always a work on one’s own nature Once, the great Yogi, Mahatapa, was meditating on Lord Shiva, absorbed in the inner rhythms of Om Namah Shivaya when a little […]
Halal is an Arabic word that indicates what is allowed or permitted. A practising Muslim’s life is regulated by what is Halal and what is Haram (forbidden or prohibited). Naturally, […]
The Sanatani is an open system. That does not mean it is a one-way stream, with people leaving the Hindu fold … It means those who left can also return. […]
वेद महासागर हैं। सूक्ष्म व सघन ज्ञान के। और यह ज्ञान का सागर पूरी मानवजाति की विरासत है। कदाचित वेद के वर्णन का मेरे पास यही सबसे उत्तम रूपक है। यह […]
यज्ञ वेद का मुख्य प्रतीक है। यदि हम यज्ञ को इस भाव से समझेंगे तो वेद का अर्थ भी स्वतः प्रकट हो जाता है। यज्ञ वेद का मुख्य प्रतीक है। यह अस्तित्व की गहन समझ है जो हमारे पूर्वज ऋषियों ने सांकेतिक रूप में हमें दर्शाई। यह एक काव्यात्मक रहस्यमय यात्रा है जो मूल रूप से आध्यात्मिक है। यद्यपि इसे कई विवेचकों ने केवल रूढ़ि ही समझा, स्वामी दयानन्द व श्री अरविन्द ने इसके तीन स्तर हमें दिखाए। ये स्तर हैं आधिभौतिक, आधिदैविक व आध्यात्मिक। यदि हम अग्नि को हमारे हृदय के भीतर जलती सतत दिव्य ज्वाला के रूप में देखें, तो यज्ञ का अर्थ बदल जाता है। अग्नि चित्त का ध्यान हैं व तपस के देव हैं। स्वामी दयानंद ने इन्हें आत्मन व परमात्मन का वाची कहा है, अर्थात ये न केवल आत्मा व परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं ये उनके सत्य की उद्घोषणा भी करते हैं। अग्नि यज्ञ के प्रथम देव हैं। इसीलिए उन्हें पुरोहित कहा गया है। पुरतः अर्थात वह जो आगे या अग्र भाग में हो, पूर्व में हो। अर्थात अग्नि यज्ञ में अग्र रूप हैं जो साधक या ऋषि का अर्पण स्वीकार करते हैं। यज्ञ बली नहीं है। ना ही इससे भाव किसी प्रिय वस्तु का खोना है। बल्कि सब कुछ ईश्वरीय ज्योति में दान कर अपने निमित्त होने मात्र की स्वीकृति है। और यह दान ही सबसे बढ़ी प्राप्ति और पूर्णता है। और इसी धर्म में स्वयं का रूपांतरण है। स्वयं में जो भी विकृतियाँ हैं या असिद्धि है। उसे सत्य से युक्त कर उसका उत्थान है। हमारी परंपरा में यज्ञ को कर्मकांड माना गया है। किन्तु यदि हम इसकी गहराई में उतरें तो हमारे सभी कर्म परमात्मा के द्वारा ही अनूदित होते हैं। यदि हम कर्ता भाव त्याग कर जीवन को यज्ञ का निरूपण मान लें तो कभी कर्म वास्तव में योग में परिवर्तित हो जाते हैं। यज्ञ का निरुक्त देखें तो ज्ञात होगा कि इसके मूल अक्षर हैं य, ज्, व, ञ। य से भाव उठता है नियंत्रण का, स्वामित्व का, जैसे यम, यंत्र, आदि। ज से भावार्थ है शक्ति व रचना का जैसे जन्म, जनन, आदि। और अंत में न या ञ ध्वनि से अर्थ है वहन करना जैसे नयति, नति, आदि। यज्ञ से फिर अर्थ हुआ वे जो अधिष्ठ हैं। अध्यक्ष हैं। इसीलिए श्री अरविन्द ने कहा है कि यज्ञ द्योतक हैं विष्णु, शिव, योग, व धर्म के। […]